Pather Panchali
Pather Panchali
Author: Bibhutibhushan Bandhopadhayay Tran. Manmathnath Gupta
गला के सुप्रसिद्ध लेखक विभूतिभूषण बंद्योपाध्याय (12.9.1894–1. 11.1950) की अमर कृति ‘पथेर पांचाली’ बंगला ही नहीं, बल्कि समस्त भारतीय भाषाओंं की श्रेष्ठतम कृतियों में से एक है जिसे अपने रचनाकाल (1929) के बाद से अब तक पाठकों की सर्वाधिक चहेती पुस्तकोंं में से एक होने का गौरव प्राप्त है । बंगाल के निम्न–मध्य वर्ग के जीवन और समाज की सच्चाई से भरी–पूरी विभूति बाबू की इस औपन्यासिक कथा में ‘अपू’ ,क अमर पात्र है जिसके इर्द–गिर्द रचे घर–संसार में वे पूरे बंगाल के जन–मन की आंतरिकता का चित्रण करते हुए उस ज़मीन और युग की जटिलाओं तथा वहां की साधारणता में असाधारणता की तलाश का अनोखा कोलाज रचते हैं जो हमें बांधता और अनेक जगहों पर बेधता भी है । इस तरह वे पाठक के मन–मस्तिष्क पर अपना पूरा साम्राज्य स्थपित कर लेते हैं जो उनके रचे–निर्मित किए दरिया मेंं बहता चला जाता है । यह कहानी पाठक को सीधे–सीधे स्थापित व्यवस्था के विरुद्ध उद्वेलित नहीं करती बल्कि इसमेंं आदमी के जीने–मरने और संघर्ष करने की विवशता और परिस्थितियां ही उसे भीतरी तौर पर बदलाव का रास्ता सुझाती हैं । विभूति बाबू की असली जगह उनके दूर–दूर तक फैले पाठकों के म/य है । सत्यजित राय ने उनके इसी लोकप्रिय उपन्यास पर अपनी प्रसिद्ध नाटक–फिल्म ‘पथेर पांचाली’ (1955) का निर्माण किया जिस पर उन्हें ‘आस्कर पुरस्कार’ (1992) मिला । यह फिल्म 13 सप्ताह तक कलकत्ता के सिनेमा घरों में हाउसफुल रही जिसकी शूटिंग कलकत्ता के निकट बोराल गांव में हुई थी । ‘पथेर पांचाली’ विभूति बाबू की कलम से उकेरी गई बंगला भाषा और संस्कृति की महान और अमर चित्रकृति है । इस उपन्यास का हिंदी अनुवाद करने वाले क्रांतिकारी–लेखक मन्मथनाथ गुप्त स्वयं भी बंगलाभाषी समाज से ताल्लुक रखते हैं जो मूल की गहराई से सुपरिचित हैं । –सुधीर विद्यार्थी