Satsang Udyog - Ek Adhyatmik Vyapar
Satsang Udyog - Ek Adhyatmik Vyapar
जीवन पथ पर चलते हुए कोई ईश्वर मिले या न मिले। हर क्षण में,भावों का एहसास होना चाहिए। भाव के बिना कोई भगवान नहीं हो सकता। सकरात्मक और नकरात्मक दोनों सतुंलन बनाने के अहम पहलू हैं। अगर सतुंलन की समझ होगी तो दोनों पहलुओ का प्रयोग करके नए किस्म की सुरक्षित प्राकृतिक रचना कर सकते हैं। दुसरे शब्दों में ईश्वर जीवन के संतुलन में कायम रहकर जाना जा सकता हैं। देश में "सत्संग" इस संतुलन को जीवन में बनाने की भूमिका निभाते हैं। इसीलिए आज "सत्संग" किसी "उद्योग" की तरह विकसित हो रहे हैं। यह एक प्रकार का आध्यात्मिक व्यपार होता जा रहा हैं। इस उद्योग में आध्यात्म की गुणवत्ता क्या हैं? किमत क्या हैं? यह कहा तक सही हैं? कहा तक उपयोगी है? इसका प्रभाव क्या हैं? यह सब जानने और खरीदने के लिए ग्राहक की तरह एक विद्यालय का विद्यार्थी जाँच-पड़ताल करता हैं। इस यात्रा में वह कभी सुमिरन करता हैं, कभी मंत्र जाप करता हैं, तो कभी पूजा करता हैं। क्या उसे "सत्संग उद्योग" से आध्यात्म की सही गुणवत्ता मिल पाती हैं? या यह सब कर के समय बर्बाद होता हैं? अंत में उसे ऐसा क्या मिलता हैं? जिसके चलते वह भगवान के प्रचार को 'सत्संग उद्योग' की संज्ञा देता हैं। यह सोच सही हैं या गलत? समझना शब्दों की जानकारी तक तय होता हैं। आध्यात्म शब्दों से परे हैं। वो क्या हैं?
Key Features:
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ISBN : 9789384314200
Publisher : Rigi Publication
Language : Hindi
Author: Hira Lal

